णर्भशुह में सोलहवें तीर्धकर भणवान्‌ श्री शान्तिनाश की मूल्लननायक मनोश्म ५वं अतिशयकाएी प्रतिमा लाखों-लोगों की आस्था का केन्द्र बिन्दु है। दूधिया सफेद संगमरमर की यह मनौएभ प्रतिमा पढ्माशन मरुढ्वा में कलात्मक के मुख्य हार के ऊपर लिखे लेख एवं तोरण चहे होत्र आअज्ुशाए यह प्रतिमा तीर्थकर श्री शान्तिनाथ की है। शौम्य, प्रशान्त और हास्य मुखतुदा युक्‍त प्रतिमा की समयावधि तोएण पए लिस्थ्रित लेख के आधाए पर संवत्‌ 436 मानी णयी है तथा प्रतिमा के की आव्ड्ृति 64५70 है। प्रतिमा पादपीठ पए लेख था, किन्तु नियमित पूजा, प्रक्षालन से यह लेख पूर्ण £ ‘एणः “>> व”? ४ 0७ रूप सै घिस गया है। यह प्रतिमा सौम्य और श्ञान्त भाव का दुर्लभ सजीव स्थापत्य है। सौम्यता के डुस महासागर के दर्शन मात्र से मन के कल्ुण अनायाश शमाप्त हो जाते हैं। प्रतिमा के शम्मुख्य पहुंचकर शर्वशुख्रों की अनुभूति होती है। रोण, शोक, भय, व्याधि आदि दु:ख दू२- दूर तक न हो, ऐशा प्रतीत होता है। प्रतिमा की मंद मुस्कान दर्शकों एवं भक्तों के मन में अपूर्व प्रशन्‍नता एवं आकर्षण उत्पन्ज करती है।